काश प्यार का इन्शुरन्स हो जाता,
प्यार करने से पहले प्रीमियम भरवाया जाता,
प्यार में वफ़ा मिली तो ठीक वर्ना,
बेवफाओं पे जो खर्चा होता उसका क्लेम तो मिल जाता।
इंतज़ार तो बहुत था हमें,
लेकिन आये न वह कभी,
हम तो बिन बुलाये ही आ जाते,
अगर होता उन्हें भी इंतज़ार कभी।
खुद को कुछ इस तरह तबाह किया,
इश्क़ किया क्या ख़ूबसूरत गुनाह किया,
जब मुहब्बत में न थे तब खुश थे हम,
दिल का सौदा किया बेवजह किया।
पलकों से रास्ते के कांटे हटा देंगे,
फूल तो क्या हम अपना दिल बिछा देंगे,
टूटने न देंगे हम इस प्यार को कभी,
बदले में हम खुद को मिटा देंगे।
ये कैसा अजब सा प्यार है,
जिसमें ना मिलने की आस ना कोई तकरार है,
दूरियाँ इतनी की सही न जाएँ,
फिर भी निभाने की चाह बरक़रार है।
सिर्फ नज़दीकियों से मोहब्बत हुआ नहीं करती,
फैसले जो दिलों में हो तो फिर चहत हुआ नहीं करती,
अगर नाराज़ हो खफा हो तो शिकायत करो हमसे,
खामोश रहने से दिलों की दूरियां मिटा नहीं करती।
इस कदर दिल को दुखाना अच्छा नहीं होता,
हर किसी से यूँ दिल को लगाना अच्छा नहीं होता,
कुछ रिश्ते होते हैं ऐसे जिनमे बेहतर है दूरियां,
इतना भी किसी के करीब जाना अच्छा नहीं होता।
कोशिशें बहुत कीं तुम से दूर जाने की,
फ़िर भी ‘तन्हाइयों‘ में तेरा ही ‘सरूर‘ रहा,
क़भी ‘खामोशियों‘ ने मापा तुम को,
क़भी ‘दर्द‘ ने ‘पुकारा‘ तुम को..!
जिस दिल में दर्द नहीं वो दिल नहीं होता,
शीशा कभी पत्थर के मुकाबिल नहीं होता,
बिन चाहे मिल जाती है हर शय भी यहाँ,
जो चाहता हूँ वो कभी हांसिल नहं होता ll
आज बरसों के बाद वो फिर से नजर आये हैं
जज्बे वही दिल की गहराइयों से उभर आये हैं,
दिल लगाने की तो खूब सजा मिली हमें,
अब पूरी करने वो कौन सी कसर आये हैं ll
कल अगर फुर्सत न मिली तो क्या होगा,
इतनी मोहलत न मिली तो क्या होगा,
रोज़ कहते हो कल मिलेंगे कल मिलेंगे,
कल ये आँखे न खुली तो क्या होगा।
मौत की वादियों से,
मैं कभी खुद को बचा तो न पाऊँगी,
पर जब तक चली साँसे,
कसम तेरी ये मोहब्बत निभाऊंगी।
सच है कि मुझे संभलना होगा,
टूट कर बिखरने से बचना होगा।
सीने में जल रही है जो आग,
वो आज काफी नहीं है,
आज पत्थर को भी पिघलना होगा।
आंखें खुली हो तो चेहरा तुम्हारा हो,
आँखें बंद हो तो सपना तुम्हारा हो,
मुझे मौत का डर नहीं होगा,
अगर कफ़न की जगह दुपट्टा तुम्हारा हो।
क्या प्यार में सोचा था, क्या प्यार में पाया हैं,
तुझको मिलाने की चाहत में, खुद को मिटाया हैं,
इस पर भी कोई इलज़ाम, ना तुझ पर लगाया हैं,
मेरी ही ख्वाईशो ने, आज मुझे अर्थी पर सुलाया हैं..!
तन्हा मौसम है और उदास रात है,
वो मिल के बिछड़ गये ये कैसी मुलाक़ात है,
दिल धड़क तो रहा है मगर आवाज़ नही है,
वो धड़कन भी साथ ले गये कितनी अजीब बात है.
उसने दर्द इतना दिया कि सहा न गया,
उसकी आदत सी थी इसलिए रहा न गया,
आज भी रोती हूँ उसे दूर देख के,
लेकिन दर्द देने वाले से ये कहा न गया।
दर्द बन के दिल में छुपा कौन है,
रह रह कर इसमें चुबता कौन है,
एक तरफ दिल है और एक तरफ आइना,
देखना है इस बार पहले टूटता कौन हो.
इतनी शिद्दत से चाहा उसे की खुद को भी भुला दिया,
उनके लिए अपने दिल को कितनी ही बार रुला दिया,
एक बार ही ठुकराया उन्होंने,
और हमने खुद को मौत की नींद सुला दिया।
तेरे इंतज़ार के मारे है हम,
सिर्फ तेरी ही यादों के सहारे है हम,
तुझे चाहा था जितना इस दुनिया से,
और आज तेरे ही हाथों हारे है हम।